"जब दिल पति के साथ बंधा हो और शरीर किसी और की बाँहों में सुकून ढूंढे — तब स्त्री के भीतर एक ऐसा द्वंद शुरू होता है, जिसे न समाज समझता है और न ही वो खुद..."
मेघा, 31 साल की, सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एक सुंदर, जिम्मेदार पत्नी।
उसकी शादी को 6 साल हो चुके थे — पति रोहित, एक भरोसेमंद, शांत स्वभाव का इंसान।
वो मेघा की हर छोटी-बड़ी बात का ध्यान रखता था, उसका सम्मान करता था, और उसे कभी कोई दुख नहीं दिया।
पर फिर भी, कहीं कुछ अधूरा था…
शादी ने सुरक्षा दी थी, पर वो बेचैनी नहीं… जो कभी दिल को धड़काती थी।
भाग 2: पुराने चैट की दस्तक
एक रात, मेघा फेसबुक पर स्क्रॉल कर रही थी, जब "अनुराग" का मैसेज चमका।
कॉलेज का पहला प्यार… पहली कविता… पहला चूम लेना… और पहली बेवफाई।
अनुराग ने एक लाइन लिखी थी:
"क्या अब भी वो पायल पहनती हो?"
मेघा के होठों पर एक पुरानी मुस्कान लौट आई।
भाग 3: दोबारा जुड़े धागे
कुछ दिनों की बातों ने दूरी मिटा दी।
अनुराग ने कहा —
"मैं अब भी तुझे पढ़ सकता हूँ मेघा… तू अब भी वही है — बस थोड़ा थक गई है।”
मेघा मुस्कुरा देती, लेकिन भीतर कहीं मान भी जाती।
वो चाहती थी कि कोई उसके जज़्बात को बिना बोले समझे…
और अनुराग वही था।
भाग 4: दो प्यार, दो धड़कनें
एक दिन अनुराग शहर आया — और मिलने की जिद की।
कॉफी शॉप की एक टेबल पर, 7 साल बाद — वो आमने-सामने बैठे।
वो बोला,
"क्या तेरे दिल में अब भी मेरे लिए कुछ बाकी है?"
मेघा ने धीरे से कहा —
"मैं तुम्हें भूली नहीं… पर मैंने खुद को संभाल लिया था।
अब मैं एक पत्नी हूँ… और रोहित एक बहुत अच्छा इंसान है।"
अनुराग ने जवाब दिया —
"अच्छा इंसान होना ही काफी होता है क्या?"
मेघा चुप रही।
भाग 5: प्यार की उलझी परिभाषा
मेघा अब दो रिश्तों के बीच जी रही थी —
रोहित की ममता और जिम्मेदारी… और अनुराग का जूनून और साया।
एक उसे थामे रखता था, दूसरा उसे उड़ने देता था।
उसने खुद से पूछा —
"क्या मैं पाप कर रही हूँ? या सिर्फ इंसान बनने की कोशिश?"
रातें करवटों में बीतने लगीं।
रोहित अब भी कुछ नहीं जानता था…
लेकिन वो मेघा की आंखों में थकान देखता था।
भाग 6: सच का सामना
एक शाम, रोहित ने पूछा —
"मेघा, क्या तू खुश है मेरे साथ?"
मेघा की आँखें भर आईं।
उसने धीमे से कहा —
"मैं तुम्हें छोड़ना नहीं चाहती… लेकिन मैं किसी और से भी बंधी हुई हूँ — भावनाओं से।"
रोहित सन्न रह गया।
कुछ देर बाद, उसने बस इतना कहा —
"मैं तुम्हारा मालिक नहीं हूँ मेघा…
लेकिन जो तुम्हारा हिस्सा मेरे पास है, उसे अधूरा मत छोड़ो।
जो भी फैसला ले, पूरे मन से ले… और सच्चे दिल से।"
भाग 7: एक चौराहा — और एक औरत की जीत
अगले दिन मेघा ने अनुराग से मिलने को कहा।
वो आई, और बोली —
"तू मुझे मेरी अधूरी कविता जैसा लगता है अनुराग…
पर अब मैं पूरी हो चुकी हूँ — रोहित के साथ।
मैं तुझे चाहती थी, लेकिन शायद खुद से ज़्यादा नहीं।"
अनुराग ने सिर झुकाया —
"मैं तुझे खोकर भी खुश हूँ… क्योंकि इस बार तू टूटी नहीं, तू जी गई है।"
भाग 8: एक नया रिश्ता — खुद से
मेघा अब रोहित के साथ है — लेकिन झूठ नहीं,
पूरे सच के साथ।
अब वो सिर्फ़ पत्नी नहीं है,
एक ऐसी औरत है जिसने अपने भीतर की उथल-पुथल को सुना, समझा, और संभाला।
उसने प्यार को सिर्फ़ देह नहीं,
आत्मा और ईमानदारी के साथ जिया।
अंतिम पंक्तियाँ — जो दिल को झकझोर दें
🕯️ कभी-कभी एक औरत दो लोगों से प्यार कर बैठती है —
पर उसकी सबसे बड़ी वफ़ादारी उस रिश्ते से होती है, जिसमें वो अपनी सच्चाई के साथ जी सके।
💔 प्यार सिर्फ़ बाँटना नहीं होता…
कभी-कभी छोड़ना भी प्यार होता है — ताकि कोई भी अधूरा ना रहे।
❣️ अगर ये कहानी आपके दिल तक पहुँची हो, तो इसे ❤️LIKE और 💬SHARE ज़रूर करें —
क्योंकि शायद कोई और “मेघा” आज भी अपने दिल की दोनों धड़कनों को समझने की कोशिश कर रही हो…
